11-12-91  ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

सत्यता की सभ्यता ही रीयल रॉयल्टी है

अव्यक्त बापदादा अपने रीयल और रॉयल बच्चों प्रति बोले :

आज बापदादा अपने श्रेष्ठ परिवार अर्थात् अपने रॉयल फैमली को देख रहे हैं। सारे कल्प में सबसे रॉयल आप श्रेष्ठ आत्माएं ही हो। अनादि आत्मिक स्वरूप में भी सबसे श्रेष्ठ रॉयल आत्मायें हो और आदि स्वरूप देव आत्माओं के रूप में भी रॉयल राज्य अधिकारी रॉयल फैमली हो। पूज्य रूप में भी आप देव आत्माओं की कितनी रॉयल्टी से पूजा होती रहती है और किसी भी अन्य धर्म आत्मा वा राजनीतिक आत्माओं की ऐसी रॉयल पूजा नहीं होती। तो तीनों रूपों में - अनादि, आदि और पूज्य स्वरूप ऐसे रॉयल और कोई भी नहीं हैं। क्योंकि आप आत्माओं की प्योरिटी की ही रॉयल्टी है। ऐसे सम्पूर्ण पवित्र और कोई भी आत्मा सारे कल्प में न ही बनी है, न बनेगी। यह प्योरिटी की ही विशेषता है। इसलिए सिर्फ देव आत्माओं के आगे ही यह महिमा गाते हैं कि आप सम्पूर्ण निर्विकारी हो, और किसी भी धर्म आत्माओं की महिमा में ऐसी महिमा नहीं गाई जाती है। सिर्फ देव आत्माओं के श्रेष्ठ कीर्ति अर्थात् श्रेष्ठ पवित्रता की ही कीर्तन होता है। और कोई भी धर्म में कीर्तन नहीं होता है। साजों और बाजों से कीर्तन का रिवाज देव आत्माओं में ही है वा संगमयुग के शक्ति स्वरूप में है। यह सम्पूर्ण पवित्रता के विधि की सिद्धि है। इसलिए आप जैसी रूहानी रॉयल्टी अौर किसी आत्मा की नहीं है। तो चेक करो- ऐसे प्योरिटी की रॉयल्टी कहाँ तक आई है? रूहानी रॉयल्टी की सबसे श्रेष्ठ निशानी है - रॉयल्टी अर्थात् रीयल्टी अर्थात् सत्यता। जैसे आत्मा का अनादि स्वरूप सत है। सत अर्थात् अविनाशी और सत्य है। जैसे बाप की महिमा विशेष यही गाते रहते हैं - सत्यम् शिवम् सुन्दरम्। सत्य ही शिव है वा गॉड इज ट्रुथ (God is truth) कहा जाता है। तो बाप की महिमा सत्य अर्थात् सत्यता की है। ऐसे रॉयल्टी अर्थात् रीयल्टी - सत्यता जरा भी बनावटी या मिला-वटी न हो। चाहे बोल में, चाहे कर्म में, चाहे सम्बन्ध-सम्पर्क में मिलावट या बनावट नहीं हो। जिसको साधारण भाषा में बापदादा कहते हैं - सच्चाई। रॉयल आत्माओं की वृत्ति, दृष्टि बोल और चलन सब एक सत्य होगी। ऐसे नहीं कि वृत्ति में एक बात हो और बोल में दूसरा बनावटी भाव हो। इसको रॉयल्टी वा रीयल्टी नहीं कहा जाता है।

आजकल बापदादा बच्चों की लीला देखते भी हैं और सुनते भी हैं। कई बच्चे बात को मिलाने और बनाने में बहुत होशियार हैं। क्योंकि द्वापर से मिलावट और बनावट की कथायें बहुत सुनी हैं। तो इस ब्राह्मण जीवन में भी वह संस्कार इमर्ज कर लेते हैं। ऐसी अच्छे रूप से बात बना लेते हैं जो झूठ को बिल्कुल सम्पूर्ण सत्य बना देते हैं और सत्य को झूठ सिद्ध कर देते हैं। इसको कहा जाता है - अन्दर एक, बाहर दूसरा। तो क्या यह रीयल्टी है? रॉयल्टी है? नहीं है ना । तो ऐसे पवित्रता की रॉयल्टी अर्थात् रीयल्टी। यह रॉयल्टी की निशानी है। अगर यह निशानी नहीं है तो समझो प्योरिटी की रॉयल्टी नहीं आई है वा परसेन्टेज में आई है, सम्पूर्ण नहीं है।

रीयल्टी की दूसरी निशानी बापदादा सदा सुनाते रहते हैं - सच तो बिठो नच। सच्ची आत्मायें सदा खुशी में नाचती रहेंगी। कभी खुशी कम, कभी खुशी ज्यादा, ऐसा नहीं होगा। दिन प्रतिदिन, हर समय और खुशी बढ़ती रहेगी। रीयल्टी की निशानी है - सदा खुशी में नाचना। नैन चैन कहते हो ना , रायल्टी का अर्थ भी है चित से भी और नैन चैन से भी सदा हर्षित। सिर्फ बाहर से हर्षितमुख नहीं, लेकिन चित्त में भी हर्षित। हर्षित चित्त हर्षित मुख, दोनों हर्षित हों। कई बार ऐसे भी होता है कि अन्दर चित्त में खुशी नहीं होती लेकिन बाहरमुख में समय प्रमाण खुशनुमा बन करके दिखाते हैं। इसको अल्प काल का हर्षितमुख कहेंगे, लेकिन हर्षित चित्त, हर्षित मुख अविनाशी हो। तो पवित्रता की रीयल्टी रॉयल्टी अर्थात् अविनाशी चित्त और मुख हर्षित हों। चेक करो - दूसरे को चेक करने नहीं लग जाना, अपने को चेक करना है। ऐसी रॉयल आत्मा बापदादा को और सर्व ब्राह्मण परिवार को अति प्यारी होती है। रीयल प्यारी आत्मा की विशेषता क्या होती है? क्योंकि आजकल के रीति-रसम प्रमाण जो बहुत प्यारा लगता है तो प्यारे के तरफ न चाहते हुए भी आकार्षित हो जाते हैं। जिसको आप लोग अपनी भाषा में अटैचमेन्ट कहते हो। क्योंकि प्यारा है तो अटैचमेन्ट तो होगी ना। लेकिन रीयल और रॉयल प्यार की निशानी है - वो जितना ही प्यारा होगा उतना ही न्यारा भी होगा। इसलिए वह न स्वयं एक्स्ट्रा अटैचमेन्ट में आयेगा, न दूसरा उसकी अटैचमेन्ट में आयेगा। इसको कहा जाता है रीयल प्यार, सम्पूर्ण प्यार। वह हर्षित रहेगा, आकार्षित भी होगा परन्तु हद की आकर्षण करने वाला नहीं। तो रीयल और रॉयल की निशानी क्या हुई? अति प्यारा और अति न्यारा।

रॉयल्टी की और विशेषता है उस आत्मा में कभी किसी भी प्रकार के, चाहे स्थूल, चाहे सूक्ष्म, मांगने के संस्कार नहीं होंगे। क्योंकि रॉयल आत्मा सदा सम्पन्न भरपूर रहती है। एक भरपूरता बाहर की होती है स्थूल वस्तुओं से, स्थूल साधनों से भरपूरता। और दूसरी होती है मन की भरपूरता। जो मन से भरपूर रहता है उसके पास स्थूल वस्तु या साधन नहीं भी हो फिर भी मन भरपूर होने के कारण वो कभी अपने में कमी महसूस नहीं करेगा। ना में भी हाँ का अनुभव करेगा। और जिसका मन भरपूर नहीं होता वह आत्मा बाहर से कितनी भी वस्तु और साधन से भरपूर होते भी वह कभी भी अपने को भरपूर नहीं समझेगा। ऐसी आत्मा सदा इच्छा के कारण ‘चाहिए चाहिए’का गीत गाती रहेगी। हर बात में ये होना चाहिए, ये करना चाहिए, ये मिलना चाहिए, ये बदलना चाहिए... हर समय यही गीत गाते रहेगें। और मन से भरपूर आत्मा सदा यही गीत गाती रहेगी सब पा लिया, प्राप्त हो गया, ये होना चाहिए, ये करना चाहिए, ये चाहिए चाहिए भी रॉयल मांगने के संस्कार हैं। बेहद की सेवा-प्रति सोचना कि ये होना चाहिए, ये करना चाहिए, वह अलग बात है लेकिन स्व की हद के प्राप्ति अर्थ चाहिए चाहिए ये रॉयल मांगना है। नाम चाहिए, मान चाहिए, शान चाहिए, प्यार चाहिए, पूछना चाहिए - ये सब हद की बातें हैं। रॉयल आत्मा में मांगने का अंश मात्र भी संस्कार नहीं होता है। समझा - रॉयल्टी क्या होती है?

तपस्या के चार्ट में यह सब चेक करना, ऐसे नहीं, मैंने किसी को गाली नहीं दी, क्रोध नहीं किया, नहीं, यह सब बातें चेक करना। फिर प्राइज लेना। तपस्या का अर्थ ही है - सम्पूर्ण पवित्र बनना। तो पवित्रता की पर्सनालिटी, पवित्रता की रॉयल्टी कहॉ तक प्रैक्टि-कल में रही है यह चेक करना है। इसको कहेंगे तपस्वीराज। समझा - रॉयल्टी क्या है?

रॉयल आत्मा का चेहरा और चलन दोनों ही सत्यता की सभ्यता अनुभव करायेंगे। वैसे भी रॉयल आत्माओं को सभ्यता की देवी कहा जाता है। उनका बोलना, देखना, चलना, खान-पीना, उठना-बैठना, हर कर्म में सभ्यता सत्यता स्वत: ही दिखाई देगी। ऐसे नहीं कि मैं तो सत्य को सिद्ध कर रहा हूँ और सभ्यता हो ही नहीं। कई बच्चे कहते हैं वैसे क्रोध नहीं आता है, लेकिन कोई झूठ बोलता है तो क्रोध आ जाता है। उसने झूठ बोला, आपने क्रोध से बोला तो दोनों में राइट कौन? सत्यता को सिद्ध करने वाला सदा सभ्यता वाला होगा। कई चतुराई करते हैं, कहेंगे हम क्रोध नहीं करते हैं, हमारा आवाज ही बड़ा है, आवाज ही ऐसा तेज है। साइन्स के साधनों से आवाज को कम और ज्यादा कर सकते हैं ना तो क्या साइलेन्स के पॉवर से अपने आवाज की गति को धीमी या तेज नहीं कर सकते हो? इससे तो ये टेप रिकार्ड और ये माइक अच्छा है जो आवाज कम ज्यादा तो कर सकते हो। तो ये चेक करो कि सत्यता के साथ सभ्यता भी है? अगर सभ्यता नहीं तो सत्यता नहीं। तो प्योरिटी की रॉयल्टी सदा प्रत्यक्ष रूप में दिखाई दे। ऐसे नहीं, अन्दर में तो रॉयल्टी है, बाहर देखने में नहीं आती। अगर अन्दर है तो बाहर में जरूर दिखाई देगी। सत्यता की रॉयल्टी को कोई छिपा नहीं सकता। इसमें गुप्त नहीं रहना है। कई कहते हैं गुप्त पुरुषार्थी हैं इसीलिए गुप्त रहते हैं। लेकिन जैसे सूर्य को कोई छिपा नहीं सकता, सत्यता के सूर्य को कोई छिपा नहीं सकता। न कोई कारण छिपा सकता है, न कोई व्यक्ति। सत्य सदा ही सत्य है। सत्यता की शक्ति सबसे महान है। सत्यता सिद्ध करने से सिद्ध नहीं होती। सत्यता की शक्ति को स्वत:ही सिद्ध होने की सिद्धि प्राप्त होती है। सत्यता को अगर कोई सिद्ध करने चाहता है तो वह सिद्ध जिद्द हो जाता है। इसलिए सत्यता स्वयं ही सिद्ध होती ही है। उसको सिद्ध करने की आवश्यकता नहीं है। समझा । तपस्या वर्ष में क्या दिखाना है? प्योरिटी की पर्सनैलिटी और रॉयल्टी। अच्छा!

देश-विदेश के तरफ से सभी बच्चों के पत्र, यादप्यार पुरूषार्थ के, सेवा के समाचार और दिल की रूहरिहान सब बापदादा के पास पहुँच रही है, पहुँच गई है। बापदादा सभी बच्चों को नाम सहित याद प्यार दे रहे हैं। हर एक समझे पहले हमारी याद। क्योंकि बाप-दादा यादप्यार का रेसपॉन्ड अव्यक्त रूप से तो उसी घड़ी दे ही देते हैं। लेकिन फिर भी साकार विधि से स्वयं भी साकार में पत्र लिखते हैं या यादप्यार भेजते तो बापदादा भी साकार विधि प्रमाण साकार रूप में भी रिटर्न यादप्यार दे रहे हैं। बापदादा जानते हैं कि चारों ओर उमंग-उत्साह तपस्या का और मन्सा वायब्रेशन द्वारा सेवा का, अच्छा है और रहेगा। अभी और भी आगे गुण-राज़युक्त

बातों को सामने रख पुरूषार्थ को, सेवा को महीन और महान बनाते चलो। सभी बच्चों को, जो सम्मुख बैठे हैं वा आकार स्वरूप से बाप के सम्मुख हैं, ऐसे सर्व सम्मुख अर्थात् सदा साथ रहने वाले नयनों में, मुख में, मन में सदा बच्चों के बाप हैं और बाप के बच्चे हैं।

ऐसे सदा याद में समाये हुए श्रेष्ठ आत्मायें, सदा प्योरिटी के रीयल्टी और रॉयल्टी में रहने वाली आत्माएं, सदा मन से सम्पन्न भर-पूर रहने वाली आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।

पार्टियों से मुलाकात

ग्रुप-1 : पद्मापद्म भाग्यवान आत्मायें अनुभव करते हो! इतना श्रेष्ठ भाग्य सारे कल्प में किसी भी आत्मा का नहीं है। चाहे कितने भी नामीग्रामी आत्मायें हों, लेकिन आपके भाग्य के आगे उन्हों का भाग्य क्या है? वह है अल्पकाल का भाग्य और ब्राह्मण आत्माओं का है - अविनाशी भाग्य। सिर्फ इस एक जन्म का नहीं है, जन्म-जन्म का है। बाप का बनना अर्थात् भाग्य का वर्सा अधिकार में मिलना। तो अधिकार तो मिल गया ना। बच्चा अर्थात् अधिकार, वर्सा। अधिकार का नशा है कि उतरता चढ़ता है? आधाकल्प तो नीचे ही उतरे, अभी क्या करना है? चलना है, चढ़ना है या उड़ना है? उड़ने वाली चीज बीच में कभी रूकती नहीं। रूकेंगे तो नीचे आयेंगे। थोड़े से समय में भी रूकेंगे फिर उड़ेंगे तो मंजिल पर कैसे पहुँचेंगे? इसलिए उड़ते रहो। लेकिन सदा उड़ेगा कौन? जो हल्का होगा। तो हल्के हो ना? या तन का, मन का, सम्बन्ध का बोझ है? अगर बोझ नहीं है तो रूकते क्यों हैं? जो बोझ वाली चीज है वो नीचे आती है और जो हल्की होती है वह सदा ऊपर रहती है। आप सब तो डबल लाइट हो ना?

तो सदा अपने भाग्य को स्मृति में रखने से भाग्य विधाता बाप स्वत: ही याद आयेगा। भाग्य विधाता को याद करना अर्थात् भाग्य को याद करना और भाग्य को याद करना अर्थात् भाग्य विधाता को याद करना। दोनों का सम्बन्ध है। कोई भी एक को याद करो तो दोनों याद आ जाते हैं। तो चलते- फिरते वाह मेरा श्रेष्ठ भाग्य! जो संकल्प में भी न था लेकिन साकार स्वरूप में प्राप्त कर रहे हैं। इतना सहज भाग्य और प्राप्त कितना सहज हो गया! किसी भी महान आत्मा के पास जाते हैं तो हद की प्राप्ति के लिए - चाहे बच्चा चाहिए, चाहे धन चाहिए, चाहे तन की तन्दरूस्ती चाहिए, तो एक प्राप्ति के लिए भी कितनी मेहनत कराते हैं और आपको क्या करना पड़ा? मेहनत करनी पड़ी? या आंख खुली, तीसरा नेत्र खुला और देखा भाग्य का नज़ारा। घर बैठे परिचय मिल गया। आप लोगों को ढूंढना नहीं पड़ा। कोई हद के खान से भी हद का खज़ाना लेना हो तो कितनी भागदौड़ करनी पड़ती है। ये तो सहज ही आपको घर बैठे हाथ में मिल गया। एक बाप एक परिवार। अनेकता खत्म हो गई और सभी एक हो गये। अपना बाप, अपना परिवार। अपना लगता है ना। चाहे कितना भी दूर हो लेकिन स्नेह समीप ले आता है। स्नेह नहीं तो साथ रहते भी दूर लगता है। तो ईश्वरीय स्नेह वाले परिवार में आ गये। इसलिए सदा याद रखो - ओहो मेरा श्रेष्ठ भाग्य! भाग्य विधाता द्वारा श्रेष्ठ भाग्य पा लिया। जब बाप ने अपना बना लिया तो और क्या चाहिए? अच्छा बन गये ना तो इच्छा खत्म हो गई। अच्छा नहीं बनते तो इच्छा रहती। इच्छायें सब सम्पन्न हो गई। बाप मिला सब कुछ मिला। तो तृप्त आत्मा सदा रूहानी नशे में रहती है। जो भरपूर आत्मा होती है तो उसके नशे को देखो - कहे, नहीं कहे, लेकिन उसका नशा स्वत: दिखाई पड़ता है। तो आपका रूहानी नशा कितना बड़ा है! तो आप क्या याद रखेंगे! वाह मेरा श्रेष्ठ भाग्य। यह याद रहेगा कि बाम्बे जायेंगे तो भूल जायेगा? बाम्बे में जितना माया का फोर्स है उतना आपमें रूहानी फोर्स है। कहते हैं ना बाम्बे माया नगरी है। आप क्या कहेंगे? हमारे लिए बाप की नगरी है। अच्छा।

ग्रुप-2 : अपने को ब्राह्मण संसार का समझते हो। ब्राह्मण संसार ही हमारा संसार है, बाप ही हमारा संसार है - ऐसे अनुभव करते हो कि और भी कोई संसार है। बाप और छोटा सा परिवार यही संसार है। जब ऐसा अनुभव करेंगे तब न्यारे और प्यारे बनेंगे। अपना संसार ही न्यारा है। अपनी दृष्टि- वृत्ति सब न्यारी है। ब्राह्मणों की वृत्ति में क्या रहता है? किसी को भी देखते हो तो आत्मिक वृत्ति से, आत्मिक दृष्टि से मिलते हो। जैसी दृष्टि, वैसी सृष्टि। अगर वृत्ति और दृष्टि में आत्मिक दृष्टि है तो सृष्टि कैसी लगेगी? आत्माओं की सृष्टि कितनी बढ़िया होगी? शरीर को देखते भी आत्मा को देखेंगे। शरीर तो साधन है। लेकिन इस साधन में विशे-षता आत्मा की है ना। आत्मा निकल जाती है तो शरीर के साधन की क्या वैल्यु है! आत्मा नहीं है तो देखने से भी डर लगता है। तो विशेषता तो आत्मा की है। प्यारी भी आत्मा लगती है। तो ब्राह्मणों के संसार में स्वत: चलते फिरते आत्मिक दृष्टि, आत्मिक वृत्ति है इसलिए कोई दु:ख का नाम- निशान नहीं। क्योंकि दु:ख होता है शरीर भान से। अगर शरीर भान को भूलकर आत्मिक स्वरूप में रहते हैं तो सदा सुख ही सुख है। सुखदायी- सुखमय जीवन। क्योंकि बाप को कहते ही हैं - सुखदाता। तो सुखदाता द्वारा सर्व सुखों का वर्सा मिल गया। माँ बाप कहा और वर्सा मिला। तो सुख की शैया पर सोने वाले। चाहे स्थूल में बिस्तर पर सोते हो, लेकिन मन किस पर सोता है? चलते-फिरते क्या लगता है? सुख ही सुख है। संसार ही सुखमय है सुख ही सुख दिखाई देगा ना। दु:खधाम को छोड़ दिया। अभी भी दु:खधाम में रहते हो या कभी-कभी चक्कर लगाने जाते हो? दु:खधाम से किनारा कर दिया। संगम पर आ गये है ना। अभी संगमयुगी हो या कलियुगी हो? स्वप्न में भी दु:खधाम में नहीं जा सकते। नया जीवन है ना। युग भी बदल गया, जीवन भी बदल गया। अभी संगमयुगी श्रेष्ठ ब्राह्मण आत्मायें हैं - इसी नशे में सदा रहो। सुखमय संसार में रहने वाले सुख स्वरूप आत्मायें। दु:ख तो 63 जन्म देख लिया। अभी संगम पर अतीन्द्रिय सुख के झूले में झूलने वाले हैं। यह बाहर का सुख नहीं है, अतीन्द्रिय सुख है। विनाशी सुख तो कलियुगी आत्माओं को भी है। लेकिन आपको अतीन्द्रिय सुख है। अगर इन्द्रियों का सुख है तो इन्द्रियाँ तो खुद ही विनाशी हैं तो सुख भी विनाशी होगा ना? कभी भी ये संकल्प में नहीं आ सकता कि फलाने ने मुझे बहुत दु:ख दे दिया। फलाना बहुत दु:खी करता है ये संकल्प भी नहीं कर सकते। अगर किसी ने दु:ख दिया तो आपने लिया क्यों? देने वाले ने दिया, और आपने नहीं लिया, तो किसके पास रहा? आपको तो नहीं मिला ना, तो लेते क्यों हो? जो कहते हो मेरे को बहुत दु:खी किया। ये बहुत दु:ख देने वाला है - ब्राह्मणों के ये बोल नहीं। ऐसे बोल कभी बोलते हो? मातायें कभी बोलती हो - बहु ने बहुत दु:ख दिया, तंग किया। बहु कहे - सासु ने बहुत दु:ख दिया, ननद ने बहुत दु:ख दिया। ऐसे तो नहीं कहती हो, भाषा परिवर्तन हो गई है। लेने वाले लेंगे नहीं तो कहाँ से आपके पास आया? बापदादा ने क्या पक्का कराया था - न दु:ख दो, न दु:ख लो। हम तो किसको दु:ख देते नहीं, यह अधूरा हुआ। दु:ख लेते भी नहीं। तो जब न देंगे, न लेंगे, तब अतीन्द्रिय सुख में रहेंगे। देने वाला कोई किचड़ा देवे तो ले लेगें? दु:ख अच्छा है या बुरा? जब बुरी चीज है तो लेते क्यों हो? वो दे देता है मजबूरी से इसीलिए ले लेते हो? अगर कोई किचड़ा फेंक कर भी जाये तो आप क्या करेंगे? फेंक देंगे या रख देंगे, जमा करके? अगर जबरदस्ती कोई दे भी देता है तो खत्म कर दो, रखते क्यों हो, धारण क्यों करते हो? ब्राह्मण अर्थात् सदा सुखी? सदा सुख देने वाले। ब्राह्मणों का काम है - सुख देना और सुख लेना। तो सदा सुख के झूले में झूलते रहो। बाप कहते हैं - सदा बाप के साथ झुले में झूलते रहो। यही भक्ति का फल है।

सदा रॉयल फैमिली वाले हो ना। रॉयल फैमली वाले सदा गलीचों में चलते, मिट्टी में नहीं। तो झूले में झूलो। नीचे आना अर्थात् मिट्टी में आना। यह देह भी मिट्टी है ना। तो देह भान में नीचे आना अर्थात् मिट्टी में पांव रखना। तो जब गलती से भी मिट्टी में पांव रखते हो उस समय अपने से पूछो कि हम रॉयल बाप के बच्चे और मिट्टी में पांव कैसे रखा? माँ बाप के जो लाडले बच्चे होते हैं तो कोशिश करते हैं सदा गोदी में खेलता रहे। नीचे नहीं रखेंगे। तो आप भी लाडले हो। जब बाप ने इतना सिकीलधा लाडला बना दिया तो लाडले होकर चलो ना, साधारण नहीं बनो। अच्छा।